समीक्षा: जब राजनीति स्वार्थ नीति में भटक जाए…तब बिहार शासन की डगमगाती नैया को कौन बचाएगा? वरिष्ठ पत्रकार आरएमपी मधुर की कलम से…
समीक्षा: जब राजनीति स्वार्थ नीति में भटक जाए…तब बिहार शासन की डगमगाती नैया को कौन बचाएगा?
वरिष्ठ पत्रकार आरएमपी मधुर की कलम से…
बिहार की जनता माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर इतना भरोसा करती है, यह कहने सुनने और बताने की जरूरत नहीं … सच्चाई क्या है रही है कि आदरणीय स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई, आदरणीय श्री लालकृष्ण आडवाणी से लेकर आदरणीय श्री अमित शाह की विशेष कृपा नीतीश कुमार के सिर पर कायम रही है, इसके बावजूद इन्होंने समय-समय पर भाजपा नेतृत्व का अप्रत्यक्ष अपमान करते हुए नए घर की तलाश में अपनी राजनीतिक ऊर्जा खर्च करने का दुस्साहस किया है। मेरा व्यक्तिगत ख्याल है कि आने वाले समय में जदयू नेताओं सहित कर्मठ समर्पित कार्यकर्ताओं के बीच अनेक दीवारें खड़ी हो जाएंगे! जग जाहिर है -विपरीत हवाओं का सामना करने के दौरान समुद्र में टाइटैनिक जहाज को डूबने से कोई नहीं बचा पाया था।
प्रजातंत्र में नंबरों का खेल है और बिहार में आदरणीय श्री लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद सभी दलों से आगे आकर चुनाव जीतने का करिश्मा दिखा चुकी है, बावजूद राजद को बिहार में सरकार बनाने का अवसर नहीं… आखिर ऐसा क्यों ? इस सवाल का जवाब माननीय नीतीश कुमार के पास है। सत्ता का मोह आदमी को इतना गिरा देता है कि वह राष्ट्रधर्म पर बेशर्म होकर खुद अपनी पीठ थपथपाता ही रहता है।
मैं 76 वर्षीय एक गैर राजनीतिक वरिष्ठ नागरिक हूं, और बिहार की धरती का संघर्षशील एक वरिष्ठ पत्रकार हूं। मुझे राजनीतिक लाभ अर्जित करने की लालसा कभी नहीं रही है। लेकिन प्रदेश और देश में सभी राजनीतिक लोगों की गतिविधियों पर मन ही मन मंथन करता रहा रहा हूं।
मेरी आत्मा में एक निःस्वार्थ विचार कौंध रहा है कि यदि नीतीश कुमार जी एनडीए से अपना रिश्ता तोड़ कर राजद का दामन थामने का निर्णय लेते हैं तो उन्हें व्यक्तिगत स्वार्थ छोड़कर मुख्यमंत्री पद की कुर्सी श्री लालू जी के युवा पुत्र तेजस्वी प्रसाद यादव को सौंप कर एक ऐतिहासिक आदर्श स्थापित कर बिहार की करोड़ों जनता के दिलों को जीत सकते हैं। अन्यथा बिहार के इतिहास में उनकी कार्यशैली सदा आलोचनाओं दम तोड़ती रहेगी…।
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